रविवार, 21 दिसंबर 2014

दोस्त

आपने कभी  अपने आपको
आईने में  देखा  है
आपका दाहिना हाथ
आईने में
आप ही का  बायाँ  हाथ क्यों हो जाता है
आप ही का  बायाँ हाथ
आप ही का दाहिना हाथ क्यों हो जाता है

क्योंकि
वो बार बार आपसे कहता है
ऐ दोस्त
कहाँ सिर्फ बाहर ही बाहर
अपने दोस्त ढूंढ़ता है
एक बार अपने लिए
अपना हाथ बढ़ाकर तो देख
सिर्फ एक बार
अपने को
अपना ही
दोस्त बनाकर तो देख
 

लेकिन
हम हैं कि
रोज़
सबकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते चले जाते हैं
और
अपने आपको भुलाये चले जाते हैं
आज फिर एक मौका है
जब भी आइना देखे
आईने की बात मानकर देखे
एक बार सिर्फ एक बार
अपने आपको
अपना
दोस्त बनाकर तो देखिये
ज़िन्दगी जीने
का
अंदाज़ ही बदल जायेगा

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

इन्सान



दुनिया बनाने वाले ने
जब भी दुनिया बनाई
बड़े
सोच समझकर
अच्छी भली दुनिया बनाई

सुन्दर सुन्दर पक्षी
अच्छे भले जानवर
और
सबसे समझदार
इन्सान

सारे पशु पक्षी
छोटे बड़े जानवर
यहां तक कि
खूंखार से खूंखार
जानवर भी
एक दूसरे के साथ
आराम से शान्ति से रह लेते हैं

लेकिन
इन्सान  ने तो अपनी मर्ज़ी से
अपनी एक नयी दुनिया ही बना डाली
इन्सान  ने अपनी दुनिया को ऐसा बांटा
कि
इन्सान  से इन्सान ही बँट गया
कहीं
मुल्कों की सरहदें हैं
तो कहीं
रियासतो  की सरहदें हैं
कहीं
मजहबों का
कहीं सम्प्रदायों का
बँटवारा है
तो
कहीं
इन्सान
भाषा से बंटा है

और
इस बँटवारे से
इन्सान
ऐसा हो गया
कि
अपनी पहचान
देश से
रियासत से
मज़हब से
सम्प्रदाय  से
भाषा  से
तो
करवाता है
पर
कहीं भी इन्सान
इन्सान  की तरह अपनी पहचान
नहीं करवा पाता है


काश
हम इतनी  बड़ी दुनिया में
सिर्फ इन्सानों  की
एक अच्छी
दुनिया बना पाते





बुधवार, 17 दिसंबर 2014

हैवान

कल कुछ बस्ते और टिफ़िन
स्कूल से लौटे हैं नहीं
क्योंकि
उन्हें ले जाने वाले
मासूम स्कूली बच्चों को
स्कूल में ही
बेरहम हत्यारों ने
बेरहमी  से मार डाला
ऐसे बेरहमों के लिए सिर्फ एक लब्ज़
हैवान

रविवार, 14 दिसंबर 2014

वो पेड़

कुछ समय पहले
सिगरेट के पैकेट पर
जो पौधे का फोटो बनाया गया था
उस पर फूल तो कभी का उग आया था
हाँ
उस पर अब
साल दर साल
फल भी हुआ करते हैं
 और
हर साल
पतझड में बाकायदा
पत्ते झड़ जाते हैं
और
वसंत में फिर से
फूलों से और फिर फलों से
लद्द जाता है 

  

जो जीता वही सिकन्दर


कल की ही बात है
एक दोस्त ने दूसरे से मेवाड़ी में कहा
"गेला कदी नी थाके "
दिल को छू गया
मतलब है
रास्ते जिन पर हम चलते हैं
कभी थकते नहीं है
हाँ
हम चलने वाले राहगीर
अक्सर थक जाया करते हैं
जो थक कर हार जाते हैं
वे पीछे छूट जाते हैं
जो थक कर
थोड़ा आराम कर
फिर आगे बढ़ जाते हैं
वे भी देर सवेर
मंज़िल पर पहुँच ही जाते हैं
और
जो कभी थकते ही नहीं
बस चलते चले जाते हैं
अपनी मंज़िल पर पहुंचकर
सबसे जीत जाते हैं
और
जो जीता वही सिकन्दर
कहलाते हैं