सोमवार, 24 मार्च 2014

वक्त



एक दिन
मुझे क्यों कर सूझा
कि
वक़्त
जो भागा  जा रहा है
इसे
पकड़कर  रख लिया जाए

अब
प्रश्न आया कि
भागते वक्त को पकड़ा कैसे जाए
सोचा
दौड़कर पकड़ ही लूँगा
और
मैं
दौड़ पढ़ा
वक्त को पकड़ने को
मैं
दौड़ दौड़ कर
थक गया परेशान हो गया
पर वक्त को
पकड़ना तो दूर
छू  भी नहीं पाया

जाता हुआ
वक्त किसी का हुआ है
कभी कोई वक्त को पकड़ पाया है
वक्त तो वक्त है
जो इसकी क़द्र करता है
सब उसकी क़द्र करते हैं



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