पेड़ों के झुरमुट होते थे
पेड़ों पर परिन्दे होते थे
पेड़ लहलहाते थे
परिन्दे चहचहाते थे
लेकिन
अब न पेड़ों के झुरमुट होते हैं
न
पेड़ों पर परिंदे होते हैँ
न
पेड़ लहलहाते हैं
न
परिंदे चहचहाते हैं
हाँ
पेड़ों के झुरमुट दीखते हैं
पेड़ों पर परिन्दे दीखते हैँ
लेकिन
सिर्फ फेसबुक,ट्विटर और व्हाट्सप्प पर
लगता है
धीरे धीरे सारी जीवन्त दुनियां
सोशल मीडिया पर सिमटकर रह जायेगी
आदमी आदमी न रहकर
फेसबुक की आईडी
और
ट्विटर का हैंडल रह जाएगा
पेड़ों पर परिन्दे होते थे
पेड़ लहलहाते थे
परिन्दे चहचहाते थे
लेकिन
अब न पेड़ों के झुरमुट होते हैं
न
पेड़ों पर परिंदे होते हैँ
न
पेड़ लहलहाते हैं
न
परिंदे चहचहाते हैं
हाँ
पेड़ों के झुरमुट दीखते हैं
पेड़ों पर परिन्दे दीखते हैँ
लेकिन
सिर्फ फेसबुक,ट्विटर और व्हाट्सप्प पर
लगता है
धीरे धीरे सारी जीवन्त दुनियां
सोशल मीडिया पर सिमटकर रह जायेगी
आदमी आदमी न रहकर
फेसबुक की आईडी
और
ट्विटर का हैंडल रह जाएगा
1 टिप्पणी:
मेरे गाँव की चौपालों पर, अब वो जमघट नहीं रही.
सर बहुत ही अच्छी कविता.
दिल को छू गई.
वर्तमान समय का आइना
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