कविता
सोमवार, 1 मार्च 2010
सही गलत
हम जन्नते हैं
कि
क्या सही है हमारे लिए
पर
न जाने क्यों कर नहीं पाते हैं
हम जानते हैं
कि
क्या गलत है हमारे लिए
पर
बरसों से किये चले आ रहे हैं
और
बस ऐसे ही जिए जा रहे हैं
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