मंगलवार, 21 अगस्त 2012

खुशियों की दुकान

काश
खुशियों की कोई दुकान होती 
खुशियाँ खरीद लाते 
और 
हमेशा खुश नज़र आते 

लेकिन 
इसमें भी तो तकलीफ है 
खुशियाँ 
अगर दुकानों पर बिकती 
तो सरकारें उस पर भी 
कोई न कोई कर ज़रूर लगाती 


हर बजट में 
खुशियाँ भी महँगी होती 

गरीब 
जो गुज़ारा भी नहीं कर पाते 
भूखों तो मरते ही मरते 
हमेशा दुखी भी रहते 
क्योंकि 
खुशियाँ खरीद नहीं पाते 


खुशियों की भी कालाबाजारी होती 

गेस सिलेंडर की तरह 
खुशियाँ भी ब्लेक में मिला करती 

घर में बैठे बूड़े माँ - बाप
अपने कमाऊ पूतों से 
खुशियाँ लाने की मिन्नतें करतें

कुछ आज्ञाकारी पुत्र 
तो 
अपने माँ -बाप के लिए 
ढेरों खुशियाँ ले आते 
और 
कुछ ढीठ बच्चे 
अपनी बीबी और बच्चों के लिए 
ढेरों खुशियाँ ले आते 
पर 
अपने माँ -बाप के सामने  
महंगाई का रोना रोते 
और 
बिचारे माँ -बाप 
चुपचाप मन मसोसकर रह जाते 
फिर भी 
अपने बच्चों को 
दिल से 
सुखी रहने  का आशीर्वाद दिया करते  

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