रविवार, 23 फ़रवरी 2014

मन



हम
रोज़ पूछते हैं
दिन रात पूछते हैं
मन - तू कब समझेगा ?
जबकि
मन सब समझता है
हम ही हैं
जो
समझ समझकर
भी
समझना नहीं चाहते हैं

मन से पूछते रहते हैं
ऐ मन - तू कब समझेगा

मन कहता है
ऐ मानव मैं तो सब समझ रहा हूँ
पर
एक तुम ही हो
जो
समझ समझकर भी
न समझने का नाटक
करते आ रहे हो

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