कविता
रविवार, 23 फ़रवरी 2014
बेचारा दिल
बेचारा दिल
आप समझते हैं
बेचारा है
जबकि इस दिल ने
बेचारा तो
आपको कर रखा है
आप जो भी कहें जो भी चाहें
ये मानता नहीं है
दिल ने
जो कह दिया
जो चाह लिया
वो मनवाके रहता है
फिर भी
हम सब बेचारे
कहते है
बेचारा दिल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें