शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

कल आज और कल

जो कल कल था
वह आज हमारा नहीं रहा
जो आज आज है
वह कल हमारा नहीं रहेगा
जो कल कल आएगा
वह भी आज हमारा नहीं है

फिर क्यों हम विगत और आगत की चिंता में
सब कुछ खो रहें है
जागते हुए भी ऐसा लगता है
की
हम तो बस सो रहे है

2 टिप्‍पणियां:

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सुंदर रचना पाहुजा जी आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है मेरा आमंत्रण स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर भी पधारे कविता का आनंद आपकी बाट जोह रहा है

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!