कविता
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
ख़ुशी गम
नीली छतरी वाले की
अजब माया है
कहीं दीखता नहीं है
पर
सभी ओर छाया है
कहीं खुशियाँ इतनी
कि
समंदर भी छोटा पड़ जाये
और
कहीं ग़मों का है अम्बार
ऐसा कि
इंसान ग़मों के बोझ के नीचे दबा जाता है
2 टिप्पणियां:
Sunil Kumar
ने कहा…
sahi kaha aapne , shubhkamnayen
18 फ़रवरी 2011 को 7:55 pm बजे
Amit Chandra
ने कहा…
हम भी आपकी बातों का समर्थन करते है।
18 फ़रवरी 2011 को 9:28 pm बजे
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2 टिप्पणियां:
sahi kaha aapne , shubhkamnayen
हम भी आपकी बातों का समर्थन करते है।
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