कविता
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
अजीब रिश्ते
कल तक जो
हमेशा साथ निभाने का करते थे वादा
आज एक दूसरे को
एक आँख नहीं सुहाते
न जानने क्यों
दुनिया के ऐसे अजीब रिश्ते हैं
कुछ कदम साथ चलते हैं
फिर
अपनी अपनी राह पर
ऐसे चलते हैं
जैसे एक दूसरे को
पहचानते तक नहीं
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