हर वर्ष कि तरह
यह वर्ष भी जा रहा है
हर वर्ष कि तरह
वो नव वर्ष भी आ रहा है
वर्षों से
हर वर्ष के अंतिम दिन
वर्ष पुराना ख़त्म हो जाता है
हर वर्ष के प्रथम दिन
वर्ष नया आरम्भ हो जाता है
वर्षों से
वर्ष चले आते है
वर्षों से
वर्ष चले आते हैं
यों ही बस
पुराने का जाना
और
नए का आना
लगा रहा है
लगा रहेगा
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
शनिवार, 25 दिसंबर 2010
प्यार की खातिर
जब कोई किसी से प्यार करता है
तो
लाभ हानि का खाता नहीं बनाता है
प्यार दिल से करता है
प्रियतम के लिए जीता है
प्रियतम के लिए मरता है
क्या है खोना, क्या है पाना
प्रियतम के लिए बस मर मिट जाना
दिल सभी का ल्लोत जाता है
पर खुद तो बस लुट जाता है
प्यार में
प्यार कि खातिर
तो
लाभ हानि का खाता नहीं बनाता है
प्यार दिल से करता है
प्रियतम के लिए जीता है
प्रियतम के लिए मरता है
क्या है खोना, क्या है पाना
प्रियतम के लिए बस मर मिट जाना
दिल सभी का ल्लोत जाता है
पर खुद तो बस लुट जाता है
प्यार में
प्यार कि खातिर
चाँद पर भ्रष्टाचार
कहते हैं
एक दिन चाँद पर दुनिय बसायेंगे
सोचता हूँ ,
क्या चाँद पर भी ऐसा भ्रष्टाचार होगा ?
क्या चाँद पर भी कलमाड़ी, राजा और बंगारू होंगे?
क्या चाँद पर भी
आदर्श सोसायटी और चारा घोटाले होंगे ?
प्रार्थना तो यही है
कि
कोई भी दुनिया कहीं भी बसाये
ऐसा भ्रष्टाचार वहां न ले जाये
एक दिन चाँद पर दुनिय बसायेंगे
सोचता हूँ ,
क्या चाँद पर भी ऐसा भ्रष्टाचार होगा ?
क्या चाँद पर भी कलमाड़ी, राजा और बंगारू होंगे?
क्या चाँद पर भी
आदर्श सोसायटी और चारा घोटाले होंगे ?
प्रार्थना तो यही है
कि
कोई भी दुनिया कहीं भी बसाये
ऐसा भ्रष्टाचार वहां न ले जाये
मंगलवार, 23 मार्च 2010
फूल और कांटे
फूलों को सभी चाहते हैं
काँटों को कौन चाहता है ?
सुखों को सभी चाहते हैं
दुखों को कौन चाहता है ?
अच्छों को सभी चाहते हैं
बुरों को कौन चाहता है ?
काँटों को कौन चाहता है ?
सुखों को सभी चाहते हैं
दुखों को कौन चाहता है ?
अच्छों को सभी चाहते हैं
बुरों को कौन चाहता है ?
सोमवार, 1 मार्च 2010
कन्या दुनिया
कन्या भ्रूण की
या फिर
नवजात कन्या की
हत्या करने वालों
ज़रा सोचिये
यदि कन्या न होती
तो
मां कैसे होती
आप कैसे होते
कन्या है तो
आपका वजूद है
न होगी कन्या
तो
न होगी दुनिया
या फिर
नवजात कन्या की
हत्या करने वालों
ज़रा सोचिये
यदि कन्या न होती
तो
मां कैसे होती
आप कैसे होते
कन्या है तो
आपका वजूद है
न होगी कन्या
तो
न होगी दुनिया
सही गलत
हम जन्नते हैं
कि
क्या सही है हमारे लिए
पर
न जाने क्यों कर नहीं पाते हैं
हम जानते हैं
कि
क्या गलत है हमारे लिए
पर
बरसों से किये चले आ रहे हैं
और
बस ऐसे ही जिए जा रहे हैं
कि
क्या सही है हमारे लिए
पर
न जाने क्यों कर नहीं पाते हैं
हम जानते हैं
कि
क्या गलत है हमारे लिए
पर
बरसों से किये चले आ रहे हैं
और
बस ऐसे ही जिए जा रहे हैं
सोचते हैं पर भूल जाते हैं
सोचते हैं
हमारे पास अच्छे जूते नहीं हैं
क्यों भूल जाते हैं
जिनके पास पैर भी नहीं हैं
सोचते हैं
हमारे पास अच्छे कपडे नहीं हैं
क्यों भूल जाते हैं उन्हें
जिन्होंने ज़िन्दगी में कपडे पहने ही नहीं
सोचते हैं
हमारी पसंद का खाना नहीं मिलता
क्यों भूल जाते हैं उन्हें
जिन्हें जिंदगी में भर पेट खाना भी नहीं मिलता
हमारे पास अच्छे जूते नहीं हैं
क्यों भूल जाते हैं
जिनके पास पैर भी नहीं हैं
सोचते हैं
हमारे पास अच्छे कपडे नहीं हैं
क्यों भूल जाते हैं उन्हें
जिन्होंने ज़िन्दगी में कपडे पहने ही नहीं
सोचते हैं
हमारी पसंद का खाना नहीं मिलता
क्यों भूल जाते हैं उन्हें
जिन्हें जिंदगी में भर पेट खाना भी नहीं मिलता
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
मन
आप जो भी करें
अच्छा या बुरा
आपका मन सब जनता है
आप किसी से कुछ भी छुपाए
मन से कुछ नहीं छिपा पाएंगे
आप दुनिय से कितनी भी दूर भाग जाएँ
मन से कहीं भाग नहीं पायेंगे
आप कहीं भी जायेंगे
अपने मन को हमेश अपने ही साथ ही पाएंगे
अच्छा या बुरा
आपका मन सब जनता है
आप किसी से कुछ भी छुपाए
मन से कुछ नहीं छिपा पाएंगे
आप दुनिय से कितनी भी दूर भाग जाएँ
मन से कहीं भाग नहीं पायेंगे
आप कहीं भी जायेंगे
अपने मन को हमेश अपने ही साथ ही पाएंगे
जिंदगी की रेल
हर बार
एक नयी जगह
होता है धमाका
एक नयी जगह खेला जाता है
आतंक का खेल
फिर भी
ज्यों की त्यों चलती है
ज़िन्दगी की रेल
इस आतंक के कारण
कितने घरों के चिराग बुझ गए
कितनी अबलायें हुईं विधवा
पर
हम बेचारे आम आदमी
क्या कर पाए ?
समाचार सुना, पढ़ा
और भूल गए
न कोई सहानुभूति
न कोई चिंता
सवेरे वही रोज़ का खेल
वही हमारी
जिंदगी की रेल
एक नयी जगह
होता है धमाका
एक नयी जगह खेला जाता है
आतंक का खेल
फिर भी
ज्यों की त्यों चलती है
ज़िन्दगी की रेल
इस आतंक के कारण
कितने घरों के चिराग बुझ गए
कितनी अबलायें हुईं विधवा
पर
हम बेचारे आम आदमी
क्या कर पाए ?
समाचार सुना, पढ़ा
और भूल गए
न कोई सहानुभूति
न कोई चिंता
सवेरे वही रोज़ का खेल
वही हमारी
जिंदगी की रेल
आदमी खुदा
आदमी
अपने इर्द गिर्द
कुछ लोगों को पाकर
खुद को
" खुदा" समझने लगता है
क्यों भूल जाता है
कि
खुदा तब भी था
जब वह खुद नहीं था
खुदा तब भी रहेगा
जब वह खुद भी नहीं रहेगा
अपने इर्द गिर्द
कुछ लोगों को पाकर
खुद को
" खुदा" समझने लगता है
क्यों भूल जाता है
कि
खुदा तब भी था
जब वह खुद नहीं था
खुदा तब भी रहेगा
जब वह खुद भी नहीं रहेगा
सही पहचान
कुछ लोग
अक्सर लोगों को
सही पहचान नहीं पाते हैं
जिन्हें वे अपना समझते हैं
जिनके लिए वे जान पर खेल जाते हैं
वे लोग ही पराये निकलते हैं
बस
अपना बनकर
और
अपना बनाकर
महज
अपना काम निकलते हैं
और फिर
इस तरह छोड़ जातें हैं
जैसे
कोई कामुक पुरुष
अपनी क्षुधा शांत कर
वेश्या को छोड़ जाता है
अक्सर लोगों को
सही पहचान नहीं पाते हैं
जिन्हें वे अपना समझते हैं
जिनके लिए वे जान पर खेल जाते हैं
वे लोग ही पराये निकलते हैं
बस
अपना बनकर
और
अपना बनाकर
महज
अपना काम निकलते हैं
और फिर
इस तरह छोड़ जातें हैं
जैसे
कोई कामुक पुरुष
अपनी क्षुधा शांत कर
वेश्या को छोड़ जाता है
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
कबूतर या गिद्ध
लोग
चेहरे पर चेहरा लगते हैं
ऊपर से
प्यार, प्रेम, अपनत्व
जताते हैं
लेकिन वास्तव में
सिर्फ अपना स्वार्थ
सिद्ध करते हैं
ना जाने
क्यों भूल जाते हैं
कि
बनावटी चेहरा
जब हट जायेगा
कबूतर के पीछे छिपा गिद्ध
सबको नज़र आ ही जायेगा
चेहरे पर चेहरा लगते हैं
ऊपर से
प्यार, प्रेम, अपनत्व
जताते हैं
लेकिन वास्तव में
सिर्फ अपना स्वार्थ
सिद्ध करते हैं
ना जाने
क्यों भूल जाते हैं
कि
बनावटी चेहरा
जब हट जायेगा
कबूतर के पीछे छिपा गिद्ध
सबको नज़र आ ही जायेगा
बचपन
क्यों हर इन्सान
बचे से
बड़ा होने को आतुर रहता है
क्यों जल्दी बचपन छोड़कर
बड़ा होना चाहता है
जबकि जनता है
कि
बड़े होकर जिमेदारियां ओदनी पड़ेंगी
और
जब बड़ा हो जाता है
तो
बस कहता ही रहता है
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
या फिर
गिव मी सम सन शाइन
गिव में सम रेन
गिव मी अनादर चांस
आई वांट तो ग्रो अप वंस अगेन
बचे से
बड़ा होने को आतुर रहता है
क्यों जल्दी बचपन छोड़कर
बड़ा होना चाहता है
जबकि जनता है
कि
बड़े होकर जिमेदारियां ओदनी पड़ेंगी
और
जब बड़ा हो जाता है
तो
बस कहता ही रहता है
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
या फिर
गिव मी सम सन शाइन
गिव में सम रेन
गिव मी अनादर चांस
आई वांट तो ग्रो अप वंस अगेन
अजीब रिश्ते
कल तक जो
हमेशा साथ निभाने का करते थे वादा
आज एक दूसरे को
एक आँख नहीं सुहाते
न जानने क्यों
दुनिया के ऐसे अजीब रिश्ते हैं
कुछ कदम साथ चलते हैं
फिर
अपनी अपनी राह पर
ऐसे चलते हैं
जैसे एक दूसरे को
पहचानते तक नहीं
हमेशा साथ निभाने का करते थे वादा
आज एक दूसरे को
एक आँख नहीं सुहाते
न जानने क्यों
दुनिया के ऐसे अजीब रिश्ते हैं
कुछ कदम साथ चलते हैं
फिर
अपनी अपनी राह पर
ऐसे चलते हैं
जैसे एक दूसरे को
पहचानते तक नहीं
सृष्टि दृष्टि
आप कभी बदल नहीं सकते - सृष्टि
बदलकर देखिये - दृष्टि
सारा संसार
ही
बदला बदला नज़र आएगा
हर असंभव
संभव
होता नज़र आएगा
बदलकर देखिये - दृष्टि
सारा संसार
ही
बदला बदला नज़र आएगा
हर असंभव
संभव
होता नज़र आएगा
अमन की आशा
अमन की आशा
हम करते हैं
अमन की आशा
में
जीते है और मरते हैं
आशा यही कि
कभी तो बर्फ पिघलेगी
कभी तो सरहदें टूटेंगी
कभी तो
हिन्दुस्तानी भाई
अपने
पाकिस्तानी भाई
से
खुलकर मिल पायेगा
दिल कि बात
दिल से
कर पायेगा
हम करते हैं
अमन की आशा
में
जीते है और मरते हैं
आशा यही कि
कभी तो बर्फ पिघलेगी
कभी तो सरहदें टूटेंगी
कभी तो
हिन्दुस्तानी भाई
अपने
पाकिस्तानी भाई
से
खुलकर मिल पायेगा
दिल कि बात
दिल से
कर पायेगा
दी सीक्रेट
कहते हैं
जैसा आप सोचते हैं
वैसा ही पाते हैं
आप सोचेंगे अछ्हा
तो पाएंगे
सब कुछ अच्छा ही अच्छा
आप सोचेंगे बुरा
तो आयेगा
जो होगा सिर्फ बुरा ही बुरा
सोच बदलकर देखिये
जीवन ही बदल जायेगा
और
आपकी दुनिया ही बदल जाएगी
जैसा आप सोचते हैं
वैसा ही पाते हैं
आप सोचेंगे अछ्हा
तो पाएंगे
सब कुछ अच्छा ही अच्छा
आप सोचेंगे बुरा
तो आयेगा
जो होगा सिर्फ बुरा ही बुरा
सोच बदलकर देखिये
जीवन ही बदल जायेगा
और
आपकी दुनिया ही बदल जाएगी
दिल है कि मानता नहीं
दिल है कि मानता नहीं
और
हम हैं कि
दिल कि हर बात मानते हैं
दिल कि बात जो मानते हैं
वो जिंदादिल जीना जानते हैं
दिल नहीं दिमाग कि जो मानते हैं
वो जीते क्या हैं
बस
खाक छानते हैं
और
हम हैं कि
दिल कि हर बात मानते हैं
दिल कि बात जो मानते हैं
वो जिंदादिल जीना जानते हैं
दिल नहीं दिमाग कि जो मानते हैं
वो जीते क्या हैं
बस
खाक छानते हैं
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